
1. सुसमाचार की अनिवार्यता
प्रभु यीशु के सुसमाचार के बिना मनुष्य परमेश्वर से अनन्त काल के लिए पृथक हैं. सुसमाचार प्रत्येक विश्वास करने वाले के लिए परमेश्वर कि सामर्थ है (रोम 1:16). तथा, "जो कोई प्रभु का नाम लेगा वह उद्धार पाएगा" (रोम 10:13). और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं, क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें. (प्रेरितों 4:12)
2. परमेश्वर पर निर्भरता
परमेश्वर पर विश्वास और निर्भरता इस मिशन के आरंभ से ही इसके ताने बाने में बुनी गई है. यह प्रदर्शित होता है हमारे मिशन के प्रत्येक पहलू के लिए प्रार्थना का आधार ही हमारी प्राथमिक कार्यनीति होने के द्वारा. अन्य प्रत्येक कार्यनीति प्रार्थना के बाद है और प्रत्येक कार्यनीति को परमेश्वर के राज्य के गुणों के अनुसार होना अनिवार्य है. हम अपने इस दर्शन में निहित बड़ी चुनौती से आंख नहीं चुराते. परमेश्वर द्वारा सब कुछ संभव है.
3. संदेश सुनने का महत्व
"विश्वास सुनने से आता है" (रोम 10:17) जो पढ़ते नहीं, पढ़ नहीं सकते या पढ़ना नहीं चाहते, सुनना ही उन तक परमेश्वर के वचन के पहुँचने का माध्यम हो सकता है. उन बहुतेरों पर भी जो पढ़ते हैं, उस संदेश को सुनना जो उनके पास सांसकृतिक रीति से उपयुक्त रूप में पहुँचाया गया है, पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा बहुत गहरा प्रभाव छोड़ सकता है. लोगों को संदेश सुनाने के लिए रिकॉर्डिंगस एक प्रभावी विधि है.
4. लोगों के छोटे समूहों की चिंता
जी.आर.एन. की कार्यनीति में कोई जन अथवा भाषा समूह अपने आकार के कारण नज़रंदाज़ नहीं होगा. यदि यथोचित शोध यह दिखाता है कि लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए रिकॉर्डिंग की आवश्यकता है, तो परमेश्वर की सहायता से, जी.आर.एन. उस आवश्यकता की पूर्ति का प्रयास करेगा.
5. धन्यवाद सहित स्तुति का रवैया
हम हर परिस्थिति में धन्यवादी और आनन्दित रहने के परमेश्वर के वचन के आदेश को दिल से मानते हैं (1 थिस्स. 5:16-18). हमारा प्रयास है कि परमेश्वर में आनन्दित बने रहने को हम कठिन परिस्थितियों में भी प्रदर्शित करने वाले हों.